सुधारों की शुरुआत: कृषि के लिए ऋण देने को प्राथमिकता देंगे सहकारी बैंक

Beginning of Reforms
कृषि क्षेत्र की प्रगति के लिए डिफाल्टरों से मुक्त करवाए जाएं सहकारी बैंक - मुख्यमंत्री
चंडीगढ़, 6 मई: Beginning of Reforms: सहकारी बैंकों के कामकाज में बड़े सुधार लाने के लिए मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने आज इन बैंकों के डिफाल्टर खाताधारकों से वसूली करने की प्रक्रिया तेज करने के हुक्म दिए ताकि खेती और सहायक व्यवसायों में ऋण देने में कोई मुश्किल पेश न आए।
आज यहां मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर हुई मीटिंग के दौरान सहकारी बैंकों के कामकाज की प्रगति का जायजा लेते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बैंकों के विकास में डिफाल्टर सबसे बड़ी रुकावट बनते हैं क्योंकि इनके पास डूबे पैसे से और जरूरतमंद लोगों की माली मदद करने में विघ्न पड़ता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि छोटे और मध्यम किसान हमेशा बैंक को पहल के आधार पर ऋण लौटाते हैं पर दुख की बात है कि बड़े किसान सहकारी बैंकों के डिफाल्टर हैं। उन्होंने कहा कि जो सरकारी मुलाजिम सहकारी बैंकों के डिफाल्टर हैं, उन्हें भी अपने बकाया का भुगतान तुरंत करना चाहिए। भगवंत सिंह मान ने सहकारिता विभाग को डिफाल्टरों से वसूली करवाने के लिए उचित प्रक्रिया अपनाने के आदेश दिए ताकि ऋण की पूरी वसूली को सुनिश्चित किया जा सके।
फसली ऋणों की वसूली सिर्फ 65 फीसदी रहने पर चिंता जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे सहकारी बैंकिंग सिस्टम पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि सहकारी बैंकों में फसली ऋण समय पर मोड़ने में ब्याज दर में भी तीन फीसदी राहत मिलती है पर फिर भी बहुत सारे किसान ऋण नहीं मोड़ते जिससे जहां वे ब्याज ज्यादा भरते हैं, वहीं भविष्य में ऋण और अन्य सुविधाएं लेने से भी चूक जाते हैं।
मीटिंग के दौरान बताया गया कि किसानों को खेती के लिए राज्य में 3523 सहकारी सभाओं द्वारा सहकारी बैंकों के माध्यम से हर साल तकरीबन 8000 करोड़ रुपये का फसली ऋण दिया जाता है जो सिर्फ 7 फीसदी ब्याज पर मिलता है और यदि किसान समय पर ऋण मोड़ देता है तो 7 फीसदी ब्याज में भी 3 फीसदी छूट मिल जाती है और इसके विपरीत जो किसान समय पर ऋण वापस नहीं करते, उन्हें 2.5 फीसदी ज्यादा ब्याज अदा करना पड़ता है, जो कि 9.5 फीसदी बन जाता है।
फसली ऋण की वसूली करने के शानदार रिकॉर्ड वाली प्राथमिक कृषि सहकारी सभाओं (पी.ए.सी.एस.) को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री ने विभाग को हिदायत दी कि इन सहकारी सभाओं का विशेष तौर पर सम्मान किया जाए ताकि सहकारी क्षेत्र में इन सभाओं को रोल मॉडल के तौर पर उभारा जा सके। मीटिंग के दौरान बताया गया कि धूरी सर्कल में पड़ती सहकारी सभाओं की ऋण वसूली की दर 99 फीसदी है और धूरी सर्कल मिसाल बन कर उभरा है। भगवंत सिंह मान ने इन सभाओं के सम्मान के लिए समारोह करवाने के लिए भी कहा।
साल 2024-25 के दौरान नाबार्ड द्वारा रियायती पुनर्वित्ती ऋण की सालाना सीमा घटाने पर चिंता जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पंजाब, देश की अनाज सुरक्षा में सबसे ज्यादा योगदान देता है और ऋण सीमा में कटौती करने से खेती के क्षेत्र पर बुरा प्रभाव पड़ा है। भगवंत सिंह मान ने कहा कि वह इस मामले को नाबार्ड के चेयरमैन के समक्ष उठाएंगे कि वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए ऋण सीमा फिर बहाल करके 3000 करोड़ रुपये की जाए।
जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों में स्वीकृत प्रबंध निदेशक (एम.डी.) और जिला मैनेजर (डी.एम.) के दो प्रमुखों की प्रथा को खत्म करने के लिए हरी झंडी देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि बैंक का प्रमुख एक ही अधिकारी होना चाहिए ताकि कामकाज को और अधिक असरदार बनाने के साथ-साथ उसकी जिम्मेदारी भी तय की जा सके।
मीटिंग में मुख्य सचिव के.ए.पी. सिन्हा, चेयरमैन पंजाब राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड जगदेव सिंह बाम, अतिरिक्त मुख्य सचिव-कम-वित्त कमिश्नर सहकारिता अलोक शेखर, प्रमुख सचिव वित्त कृष्ण कुमार, प्रमुख सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राहुल तिवारी, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव रवि भगत, मुख्यमंत्री के विशेष प्रमुख सचिव कुमार अमित, रजिस्ट्रार सहकारी सभाएं विमल कुमार सेतिया और एम.डी. पंजाब राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड हरजीत सिंह संधू हाजिर थे